Vinay
Friday, September 14, 2012
Thursday, August 23, 2012
हे विश्वमाता ! वर दो
हे विश्वमाता ! वर दो
न थकूं न रुकूँ न गिरुं न झुकूं
न डरूं न मुड़ू न ठिठकूँ न ठहरूं
बस अविचल भाव से लक्ष्य की दिशा में
बढ़ता रहूँ चलता रहूँ
कोई प्रिय धोखा दे देता रहे
समय परीक्षा ले लेता रहे
विपत्तियाँ आती हैं आयें
खुशियाँ जाती हैं जाएँ
सुख दुःख की आंधियों में
अखंडदीप की भांति जलता रहूँ
सांसारिक प्रलोभनों से निह्स्प्रिः
वीतराग सन्यासी की भांति चलता रहूँ
विश्वासघातियों के लिए भी
मेरे मन में द्रोह न हो
अपने सगों से भी अनुचित मोह न हो
शत्रुओं से भी द्वेष न हो
मान - अपमान में तनिक भी आवेश न हो
मुझे अपने अस्तित्व का सदा ज्ञान रहे
ऋषियों का वंशज होने का अभिमान रहे
अपने मार्ग पर सदा दृढ रहूँ
संकटों से कहूँ
तुम्हारे सामने झुकूँगा नहीं
लक्ष्य से पूर्व रुकुंगा नहीं ।
Monday, July 16, 2012
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय गोमती प्रसाद दूबे
स्वर्गीय गोमती प्रसाद दूबे का जन्म सन 1896 ई में संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश) के गोरखपुर जनपद के चौकड़ी नामक ग्राम में हुआ था । इनके पिता स्वर्गीय पंडित महादेव दूबे संस्कृत भाषा के प्रतिष्ठित विद्वान थे ।स्वर्गीय मदनमोहन मालवीय जी तथा डुमराव के तत्कालीन महाराज से उनके निकट सम्बन्ध थे ।
गोरखपुर जनपद के गोला बाजार उपनगर से लगभग एक कोश उत्तर में चौकड़ी गाँव स्थित है ।
यह हिमालय क्षेत्र के पहाड़ी गाँवों के सामान सुन्दर तो नहीं है परन्तु भारतवर्ष के अन्य क्षेत्रों की भांति यहाँ की धरती भी रत्नगर्भा है । यहाँ भूजल का स्तर काफी अच्छा है तथा यहाँ की मिट्टी अत्यंत उपजाऊ है । यह गाँव आम,महुआ, पीपल,नीम आदि वृक्षों से भरा हुआ है तथा यहाँ की वायु शुद्ध एवं स्वास्थ्यवर्धक है । यहाँ कई तालाब हैं जिससे यहाँ के पुरखों की जलसंरक्षण के प्रति जागरूकता का पता चलता है । यहाँ के निवासी सभ्य एवं विनम्र हैं तथा परस्पर प्रीति से रहते हैं।यहाँ हिन्दू और इस्लाम धर्म को मानने वाले निवास करते हैं । वर्तमान में हिन्दू बहुसंख्यक हैं परन्तु जिस प्रकार से मुसलमानों की जनसँख्या बढ़ रही है शीघ्र ही अल्पसंख्यक हो जाएँगे ।
इस गाँव के अधिकांश लोग शिक्षित हैं विशेषकर यहाँ के ब्राम्हण सौ प्रतिशत शिक्षित हैं तथा प्रशासनिक, न्यायिक, शैक्षणिक तथा निजी क्षेत्रों के उच्च पदों पर सुशोभित हैं ।
स्वर्गीय दुबे जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला तथा गोला बाजार स्थित जूनिअर हाईस्कूल में हुई तत्पश्चात उन्होंने पिता के सानिद्ध्य में संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किया । दूबे जी का स्वाभाव बहुत उदार था जिसकी चर्चा उनके देहांत के बाद तक गाँव में होती रहती थी ।
इनके अग्रज स्वर्गीय भगवती प्रसाद दूबे जी कांग्रेस के प्रतिष्ठित कार्यकर्ता थे जो स्वतंत्रता के पश्चात् कौड़ीराम विधानसभा क्षेत्र के प्रथम M L A बने । भगवती प्रसाद जी की इच्छा थी की उनका अनुज स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग न ले बल्कि परिवार की देखभाल करके उनका सहयोग करे क्योंकि एकसाथ दोनों भाइयों के अनुपस्थित रहने पर परिवार की देखभाल करने वाला कोई अन्य पुरुष घर में न था ।
अगस्त 1942 में जब संयुक्त प्रान्त में भारत छोड़ो आन्दोलन अपने चरम पर था ; कई स्थानों पर जनता ने अपनी सामानांतर सरकार बना ली थी दूबे जी अपने बड़े भाई के आदेश की अवहेलना करते हुए तथा अपने बीमार बड़े पुत्र लक्ष्मीशंकर दुबे के स्वस्थ्य की परवाह न करते हुए आन्दोलन में कूद पड़े । दूबे जी को गिरफ्तार किया तथा न्यायालय के सामने प्रस्तुत किया गया । उन्हें देशभक्ति का पुरष्कार एक वर्ष के कारावास के रूप में प्राप्त हुआ जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया । उनके अग्रज पहले से ही जेल में थे अतः चिकित्षा के आभाव में उनके बड़े पुत्र लक्ष्मीशंकर जो अस्वस्थ थे उनकी श्रवणशक्ति समाप्त हो गई । जेल से लौटने के एक वर्ष के भीतर ही दूबे जी का 48 वर्ष की अल्पायु में ही स्वर्गवास हो गया । उनकी धर्मपत्नी कौशल्या देवी श्रेष्ठ चरित्र की स्वामिनी और धार्मिक प्रवृत्ति की स्त्री थीं। अल्पायु में वैधव्य को प्राप्त हो जाने के बाद भी हिम्मत न हारते हुए अपने दोनों पुत्रों लक्ष्मीशंकर दूबे और गिरिजाशंकर दूबे का पालन पोषण किया एवं आदर्श हिन्दू विधवा का जीवन व्यतीत किया ।
फांसी पर चढ़ने वालों तथा आजीवन कालापानी भोगने वालों के सामने भले ही दुबे जी का योगदान कम लगे परन्तु उसे नगण्य नहीं माना जा सकता । रामसेतु बनाने में सहयोग करने वाली गिलहरी को भी अयोध्यानरेश ने हनुमान के बराबर सम्मान दिया था । चौकड़ी गाँव को विशेष रूप से दुबे बंधुओं पर गर्व है क्योकि स्वतंत्रता आन्दोलन में उसका योगदान इन्ही के माध्यम से दिया गया ।
गोरखपुर जनपद के गोला बाजार उपनगर से लगभग एक कोश उत्तर में चौकड़ी गाँव स्थित है ।
यह हिमालय क्षेत्र के पहाड़ी गाँवों के सामान सुन्दर तो नहीं है परन्तु भारतवर्ष के अन्य क्षेत्रों की भांति यहाँ की धरती भी रत्नगर्भा है । यहाँ भूजल का स्तर काफी अच्छा है तथा यहाँ की मिट्टी अत्यंत उपजाऊ है । यह गाँव आम,महुआ, पीपल,नीम आदि वृक्षों से भरा हुआ है तथा यहाँ की वायु शुद्ध एवं स्वास्थ्यवर्धक है । यहाँ कई तालाब हैं जिससे यहाँ के पुरखों की जलसंरक्षण के प्रति जागरूकता का पता चलता है । यहाँ के निवासी सभ्य एवं विनम्र हैं तथा परस्पर प्रीति से रहते हैं।यहाँ हिन्दू और इस्लाम धर्म को मानने वाले निवास करते हैं । वर्तमान में हिन्दू बहुसंख्यक हैं परन्तु जिस प्रकार से मुसलमानों की जनसँख्या बढ़ रही है शीघ्र ही अल्पसंख्यक हो जाएँगे ।
इस गाँव के अधिकांश लोग शिक्षित हैं विशेषकर यहाँ के ब्राम्हण सौ प्रतिशत शिक्षित हैं तथा प्रशासनिक, न्यायिक, शैक्षणिक तथा निजी क्षेत्रों के उच्च पदों पर सुशोभित हैं ।
स्वर्गीय दुबे जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव की पाठशाला तथा गोला बाजार स्थित जूनिअर हाईस्कूल में हुई तत्पश्चात उन्होंने पिता के सानिद्ध्य में संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किया । दूबे जी का स्वाभाव बहुत उदार था जिसकी चर्चा उनके देहांत के बाद तक गाँव में होती रहती थी ।
इनके अग्रज स्वर्गीय भगवती प्रसाद दूबे जी कांग्रेस के प्रतिष्ठित कार्यकर्ता थे जो स्वतंत्रता के पश्चात् कौड़ीराम विधानसभा क्षेत्र के प्रथम M L A बने । भगवती प्रसाद जी की इच्छा थी की उनका अनुज स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग न ले बल्कि परिवार की देखभाल करके उनका सहयोग करे क्योंकि एकसाथ दोनों भाइयों के अनुपस्थित रहने पर परिवार की देखभाल करने वाला कोई अन्य पुरुष घर में न था ।
अगस्त 1942 में जब संयुक्त प्रान्त में भारत छोड़ो आन्दोलन अपने चरम पर था ; कई स्थानों पर जनता ने अपनी सामानांतर सरकार बना ली थी दूबे जी अपने बड़े भाई के आदेश की अवहेलना करते हुए तथा अपने बीमार बड़े पुत्र लक्ष्मीशंकर दुबे के स्वस्थ्य की परवाह न करते हुए आन्दोलन में कूद पड़े । दूबे जी को गिरफ्तार किया तथा न्यायालय के सामने प्रस्तुत किया गया । उन्हें देशभक्ति का पुरष्कार एक वर्ष के कारावास के रूप में प्राप्त हुआ जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया । उनके अग्रज पहले से ही जेल में थे अतः चिकित्षा के आभाव में उनके बड़े पुत्र लक्ष्मीशंकर जो अस्वस्थ थे उनकी श्रवणशक्ति समाप्त हो गई । जेल से लौटने के एक वर्ष के भीतर ही दूबे जी का 48 वर्ष की अल्पायु में ही स्वर्गवास हो गया । उनकी धर्मपत्नी कौशल्या देवी श्रेष्ठ चरित्र की स्वामिनी और धार्मिक प्रवृत्ति की स्त्री थीं। अल्पायु में वैधव्य को प्राप्त हो जाने के बाद भी हिम्मत न हारते हुए अपने दोनों पुत्रों लक्ष्मीशंकर दूबे और गिरिजाशंकर दूबे का पालन पोषण किया एवं आदर्श हिन्दू विधवा का जीवन व्यतीत किया ।
फांसी पर चढ़ने वालों तथा आजीवन कालापानी भोगने वालों के सामने भले ही दुबे जी का योगदान कम लगे परन्तु उसे नगण्य नहीं माना जा सकता । रामसेतु बनाने में सहयोग करने वाली गिलहरी को भी अयोध्यानरेश ने हनुमान के बराबर सम्मान दिया था । चौकड़ी गाँव को विशेष रूप से दुबे बंधुओं पर गर्व है क्योकि स्वतंत्रता आन्दोलन में उसका योगदान इन्ही के माध्यम से दिया गया ।
Sunday, July 15, 2012
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